जब चूहों पर मुकदमा चला – इतिहास का सबसे अजीब ट्रायल
क्या आपने कभी सोचा है कि किसी जानवर को इंसानों की तरह अदालत में बुलाकर मुकदमा चलाया गया हो?
यह सुनने में भले ही हास्यास्पद लगे, लेकिन इतिहास में ऐसी घटनाएँ वास्तव में घट चुकी हैं।
1522 में फ्रांस में घटित एक मामला इसी का उदाहरण है, जब चूहों पर मुकदमा दर्ज किया गया।
यह घटना ना सिर्फ अजीब है, बल्कि उस समय की न्याय व्यवस्था और अंधविश्वास को भी उजागर करती है।
आज जानते हैं कैसे चूहों पर फसल तबाह करने का आरोप लगा, फिर चूहों पर मुकदमा चला, और किस चालाकी से उन्हें बरी कर दिया गया।

कैसे शुरू हुआ चूहों पर मुकदमा?
16वीं सदी के फ्रांस के एक छोटे से गाँव में किसानों की मेहनत पर पानी फिर गया जब उनकी फसलें नष्ट हो गईं।
उनकी शिकायत थी कि चूहों के झुंड ने उनकी फसल को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है।
निराश किसानों ने न्याय की गुहार लगाई और गाँव की अदालत से मदद मांगी।
अदालत ने इस शिकायत को गंभीरता से लिया और चूहों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर दिया।
चूहों को समन जारी किया गया और उन्हें अदालत में पेश होने का आदेश दिया गया।
यह आज की नजर से बिल्कुल हास्यास्पद लगता है, लेकिन उस समय इसे पूरी गंभीरता से लिया गया था।
अदालत में चूहों के लिए वकील खड़ा किया गया
जब अदालत ने चूहों को पेश होने का आदेश दिया, तो स्वाभाविक था कि चूहे कोर्ट में नहीं आ सकते थे।
इस स्थिति को देखते हुए, अदालत ने चूहों के बचाव के लिए एक वकील नियुक्त किया।
इस वकील का नाम बार्थोलोमेव चौसनी था, जो बेहद चतुर और होशियार था।
चौसनी ने अदालत में यह दलील दी:
“मेरे मुवक्किल (चूहे) अदालत में आना चाहते हैं, लेकिन रास्ते में कई बिल्लियाँ हैं जो उनकी जान के लिए खतरा हैं।
यदि अदालत चाहती है कि चूहे सुरक्षित रूप से पेश हों, तो पहले अदालत को सभी बिल्लियों को हटाने की गारंटी देनी होगी।”
यह तर्क सुनकर पूरा कोर्टरूम सन्न रह गया। जज भी इस तर्क का सीधा जवाब नहीं दे पाए।
नतीजा – चूहे बरी हो गए
अदालत के पास कोई व्यवहारिक समाधान नहीं था।
बिल्ली जैसे प्राकृतिक शिकारी के डर के कारण चूहों का पेश न होना एक स्वाभाविक बात थी।
जज ने इस दलील को स्वीकार किया और फैसला सुनाया कि चूहों को पेश होने से छूट दी जाती है।
इस तरह चूहों पर लगा आरोप खारिज कर दिया गया और वे बरी हो गए।
यह मुकदमा आज भी दुनिया के सबसे विचित्र कानूनी मामलों में गिना जाता है।
क्या चूहों पर मुकदमा करना उचित था?
उस समय के यूरोप में यह सामान्य धारणा थी कि जानवर भी नैतिक जिम्मेदारी के अंतर्गत आते हैं।
अगर जानवरों ने कोई अपराध किया, तो उन्हें सजा मिलनी चाहिए।
चूहों पर मुकदमा चलाने जैसी घटनाएँ उस समय के सामाजिक, धार्मिक और कानूनी सोच को दर्शाती हैं।
लेकिन आज के वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो यह पूरी प्रक्रिया अज्ञानता और अंधविश्वास का प्रतीक थी।
जानवरों पर मुकदमों के अन्य उदाहरण
- मुर्गे पर मुकदमा: स्विट्जरलैंड में एक मुर्गे पर अवैध अंडा देने के आरोप में मुकदमा चला था।
- सूअर पर हत्या का आरोप: 1386 में फ्रांस में एक सूअर को एक बच्चे की हत्या के लिए दोषी ठहराकर फांसी दी गई थी।
- चूहों के झुंड पर मुकदमे: कई बार पूरे गाँव के चूहों पर सामूहिक मुकदमे चलाए गए थे।
ये घटनाएँ दिखाती हैं कि उस समय जानवरों को भी सामाजिक नियमों का पालन करने के योग्य माना जाता था।
आज के समय में ऐसा क्यों नहीं होता?
आधुनिक न्याय व्यवस्था में जानवरों को कानूनी जिम्मेदारी वाला प्राणी नहीं माना जाता।
अगर किसी जानवर से कोई नुकसान होता है, तो उसका मालिक या जिम्मेदार व्यक्ति दोषी माना जाता है।
आज जानवरों के लिए Animal Welfare Laws बनाए जाते हैं, ताकि उनके साथ क्रूरता न हो।
लेकिन जानवरों को अपराधी मानकर अदालत में घसीटना अब इतिहास की बात बन चुकी है।
निष्कर्ष
1522 में चूहों पर मुकदमा इतिहास की सबसे अजीब घटनाओं में से एक है।
यह घटना दर्शाती है कि कैसे अंधविश्वास और सामाजिक दबाव के कारण न्याय व्यवस्था भी हास्यास्पद बन सकती थी।
आज हम वैज्ञानिक सोच और तर्क के आधार पर समाज को चलाते हैं, लेकिन इन ऐतिहासिक घटनाओं से एक चूहों पर मुकदमा से हमें यह सीख मिलती है कि अंधविश्वास के अंधेरे में न्याय कितना भटक सकता है।
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