कृष्ण जन्माष्टमी पर बिहारी जी की गवाही
कृष्ण जन्माष्टमी भारत का एक अत्यंत पावन पर्व है। यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। श्रीकृष्ण के अनगिनत चमत्कारों और लीलाओं के किस्से पूरे भारत में भक्तिभाव से सुने-सुनाए जाते हैं। ऐसे ही अनेक चमत्कारों में से एक अद्भुत घटना “बिहारी जी की गवाही” आज भी भक्तों के दिलों में अटूट श्रद्धा और विश्वास की मिसाल बनी हुई है।
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बिहारी जी की गवाही – एक दिव्य प्रसंग
एक बार की बात है, एक वृद्ध ब्राह्मण ने किसी साहूकार से कुछ पैसे उधार लिए। धीरे-धीरे ब्राह्मण ने अपना काम पूरा किया और एक-एक कर सारे पैसे लौटा दिए। जब सभी पैसे चुका दिए गए, तो साहूकार के मन में लालच जाग उठा। उसने ईमानदारी को छोड़कर वह पूरा वहीखाता छिपा दिया, जिसमें भुगतान का विवरण दर्ज था। फिर वह ब्राह्मण के पास जाकर बोला, “मेरे पैसे वापस करो, अभी तक नहीं लौटाए।”
ब्राह्मण घबराकर बोला, “सेठ जी, मैंने तो आपके सारे पैसे चुका दिए हैं।”
साहूकार क्रोधित स्वर में बोला, “क्या सबूत है तुम्हारे पास कि तुमने पैसे वापस किए हैं?”
ब्राह्मण बहुत सरल और भक्त था, वह बोला, “सेठ जी, मेरे पास कोई सबूत नहीं है। मेरा साक्षी तो बस मेरे बिहारी जी हैं।”
साहूकार हँसते हुए कहने लगा, “ठीक है, अदालत में तुम अपने बिहारी जी को गवाह बना लेना।”
बिहारी जी की गवाही-अदालत में भगवान की उपस्थिति
निश्चित दिन अदालत में सुनवाई हुई। जज ने ब्राह्मण से पूछा, “तुम्हारे गवाह कौन हैं?”
ब्राह्मण ने बिना झिझक जवाब दिया, “मेरे गवाह बिहारी जी हैं, जो मंदिर में विराजमान हैं।”
यह सुनकर अदालत में उपस्थित सभी लोग मुस्कुराने लगे, लेकिन जज ने मंदिर के पते पर सम्मन भेज दिया। अगली तारीख तय हुई, और गवाही का दिन आ गया। अदालत में जज ने कहा, “ब्राह्मण के गवाह बिहारी जी को हाजिर किया जाए।”
अदालत के कर्मचारी ने आवाज लगाई, “बिहारी जी हाजिर हों।” तभी सभी ने देखा कि एक दिव्य तेज लिए वृद्ध व्यक्ति धीरे-धीरे अदालत में प्रवेश कर रहे थे। सबकी आँखें आश्चर्य से भर गईं।
जज ने पूछा, “क्या आपको पता है कि साहूकार ने पैसे वापस मिलने के बाद भी ब्राह्मण पर झूठा आरोप लगाया है?”
वृद्ध व्यक्ति ने कहा, “हाँ, मुझे पता है। साहूकार ने अपनी तिजोरी के पीछे वहीखाता छिपा रखा है, उसमें सारे पैसे का विवरण है।”
यह सुनते ही जज ने तुरंत तलाशी का आदेश दिया। साहूकार की तिजोरी के पीछे वहीखाता मिला, जिसमें ब्राह्मण द्वारा सारे पैसे वापस देने की पुष्टि हुई। ब्राह्मण निर्दोष साबित हुआ, और साहूकार को दंडित किया गया।
बिहारी जी की गवाही- रहस्यमय अंतर्ध्यान होना
ब्राह्मण की निर्दोषिता सिद्ध होने के बाद जज ने वृद्ध व्यक्ति से पूछा, “बाबा, आपको छिपी हुई वस्तु का पता कैसे चला?”
यह सुनकर वह वृद्ध हँसा और देखते ही देखते अंतर्ध्यान हो गया। वहाँ उपस्थित लोगों की आँखें खुली की खुली रह गईं। जज समझ गए कि ये और कोई नहीं, स्वयं भगवान बिहारी जी ही थे, जो अपने भक्त की पुकार पर प्रकट हुए थे।
जज का वैराग्य और पागल बाबा का जन्म
इस दिव्य चमत्कार का जज के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने उसी दिन अदालत से इस्तीफा दे दिया। घर, परिवार, पत्नी और बच्चे सब कुछ त्यागकर वह साधु बन गए। कालांतर में यह जज वृंदावन पहुँचे और यहाँ गहरी साधना में लीन हो गए। अपनी अनोखी साधना और बिहारी जी की दिव्य अनुभूति के कारण वृंदावन में वे “पागल बाबा” के नाम से प्रसिद्ध हुए।
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निष्कर्ष
यह घटना भक्तों को विश्वास दिलाती है कि सच्चे हृदय से भगवान का स्मरण करने वाले भक्त की भगवान स्वयं रक्षा करते हैं। कृष्ण जन्माष्टमी पर इस पवित्र प्रसंग को सुनकर हर भक्त का हृदय बिहारी जी की भक्ति से ओत-प्रोत हो उठता है।
जय पागल बाबा की! जय बाँके बिहारी की!
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