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क्या मुर्गी अंडों से बात भी करती है? जानिए सच्चाई। Emotional but real facts

क्या मुर्गियाँ अंडों से बात करती हैं?

क्या आपने कभी गौर किया है कि मुर्गियाँ किस तरह अपने अंडों की देखभाल करती हैं? आमतौर पर हम यह सोचते हैं कि एक मुर्गी केवल अंडों को सेती है, लेकिन असल में इससे कहीं ज्यादा गहरी कहानी है। मुर्गियाँ अपने अंडों से संवाद भी करती हैं और आश्चर्यजनक रूप से, उनके बच्चे अंडों के भीतर से ही इस बातचीत का जवाब भी देते हैं।

मुर्गी अपने अंडों की ममता से रक्षा करती हुई

माँ और चूज़ों का संवाद: विज्ञान की नज़र से

मुर्गी और चूज़ों का संवाद सिर्फ एक कल्पना नहीं, बल्कि वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित तथ्य है। जब अंडों के भीतर पल रहे चूज़े तनाव, ठंड या किसी परेशानी में होते हैं, तब वे विशिष्ट प्रकार की आवाजें निकालते हैं। ये आवाज़ें चीख, हल्की चिल्लाहट या घुरघुराहट जैसी हो सकती हैं। इन आवाज़ों को सुनकर मुर्गी तुरंत प्रतिक्रिया देती है, वह अंडों को अपने पंखों से ढककर गर्माहट देती है या उन्हें पलटकर उनकी स्थिति बेहतर बनाती है। यह रिश्ता बेहद संवेदनशील होता है, और इसी वजह से इसे “ममता का संवाद” भी कहा जा सकता है।

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शरीर की भाषा से संवाद

एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि चूज़े अंडों के भीतर से ही अपने शरीर की भाषा से माँ के साथ संवाद करते हैं। वे अपने पंखों को हल्का-सा हिलाकर या शरीर को थोड़ी हलचल देकर संकेत देते हैं। मुर्गी इन संकेतों को महसूस करती है और उसी हिसाब से अंडों की देखभाल करती है।

क्लक कॉल्स और वैज्ञानिक पुष्टि

वैज्ञानिक अध्ययनों के मुताबिक, मुर्गियाँ अंडे सेने के दौरान एक विशेष प्रकार की आवाज़ निकालती हैं, जिन्हें “क्लक कॉल्स” कहा जाता है। ये आवाज़ें सुनकर अंडों के अंदर मौजूद चूज़े प्रतिक्रिया देते हैं। वैज्ञानिकों ने अपने शोधों में पाया कि इस संवाद से चूज़ों का विकास बेहतर तरीके से होता है और उनकी जीवित रहने की संभावना भी बढ़ जाती है।

माँ की पहचान और शुरुआती जीवन

इंसानों की तरह ही, मुर्गी और उसके चूज़ों के बीच का ये संवाद संबंधों को मजबूत करता है। जब अंडे फूटकर चूज़े बाहर आते हैं, तो वे पहले से ही अपनी माँ की आवाज़ को पहचान चुके होते हैं, जिससे उनकी शुरुआती ज़िंदगी सुरक्षित और मजबूत हो जाती है।

शाकाहार: संवेदनशील सोच की दिशा में कदम

शाकाहार की दिशा में बढ़ने के लिए यह जानकारी बेहद महत्वपूर्ण है। जब हम इस संवेदनशील रिश्ते के बारे में सोचते हैं, तो यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या हमें सच में अंडों का सेवन करना चाहिए? अंडों के भीतर जो जीव विकसित हो रहे होते हैं, वे भी एक तरह से भावनाओं और संवेदनाओं से भरे होते हैं। वे भी अपनी माँ के साथ संवाद स्थापित करते हैं। जब हम इसे समझते हैं, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि शाकाहार अपनाना सिर्फ एक आहार का विकल्प नहीं, बल्कि जीवन के प्रति हमारी संवेदनशीलता और करुणा का परिचय भी है।

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निष्कर्ष: ममता की भाषा को समझें

इसलिए, अगली बार जब भी आप अंडों को देखें, तो सिर्फ खाने की वस्तु के रूप में नहीं, बल्कि जीवन की उस नाजुक प्रक्रिया के रूप में देखें, जिसमें एक माँ और उसके बच्चे के बीच गहरी भावनाएं होती हैं। आपकी छोटी सी सोच और संवेदना का एक कदम इस दुनिया को और अधिक दयालु और संवेदनशील बनाने में बड़ा योगदान दे सकता है।

अंत में जाते-जाते यही कहना चाहेंगे कि प्रकृति के हर जीव का सम्मान करें, उनकी भावनाओं को समझें, और शाकाहार के प्रति एक नई सोच पैदा करें। आपकी यह सोच, सिर्फ आपकी ही नहीं, बल्कि पूरी मानवता की संवेदनशीलता की पहचान बनेगी।

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